स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँउमेश पाण्डे
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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?
अतीस
अतीस के विभिन्न नाम
हिन्दी में- अतीस, संस्कृत में-अतिविषा, शुक्लकंदा, मराठी में- अतिविष,गुजराती में- अतिविष, पंजाबी में- पतीस, बतीस, बंगला में- आतईच, कन्नड़ में- पतीस, पत्रीस, तामिल में- अतिविषयम, अंग्रेजी में- Atilplant लेटिन में- एकोनिटम हिटरोप्यलम (Aconitum heterophyllum)
यह वनस्पति जगत के रेननक्यूलेसी कुल का सदस्य है।
अतीस का संक्षिप्त परिचय
अतीस ठण्डी जगहों पर उत्पन्न होने वाला पौधा है। अत: यह पौधा हिमालय के उच्च प्रदेशों में पैदा होता है। इसके अलावा भारत के ठण्डे एवं समशीतोष्ण स्थानों पर यह दिखाई देता है। इसके पौधे एक से 4 फीट तक ऊँचे होते हैं। प्रत्येक पौधे में एक ही काण्ड होता है। इसकी शाखायें चिपटी होती हैं। इसके पते नागदमन की तरह होते हैं किन्तु पता चौड़ाई में कुछ छोटा होता है। इसके काण्ड पर से ही अनेक पत्तियां निकली होती हैं। पत्तियां वृंतयुक्त होती है। पत्र वृन्तों की जड़ से ही पुष्पदण्ड निकलता जिसके सिरे पर पुष्प होते हैं। इसका खिला हुआ फूल टोपी की आकृति का होता है। पौधे के नीचे एक कन्द होता है उसी से जड़ें निकलकर जमीन में जाती हैं। ये जड़ ही अतीस के नाम से जानी जाती है। ये जड़ें भी कन्द के समान ही होती हैं। इसके पुष्प हरिताभ लिये हुये नीले वर्ण के होते हैं। इन पर बैंगनी रंग की धारियां होती हैं।
आयुर्वेदीय ग्रंथों में रंगभेद के आधार पर चार प्रकार के अतीस बताये गये हैं। ये प्रकार कंद के वर्ण के आधार पर होते हैं, जो इस प्रकार है- लाल, सफेद, काला तथा पीला किन्तु इस समय केवल एक प्रकार की ही अतीस बाजारों में मिलती है जो कुछ भूरे रंग की होती हैं तथा तोड़ने पर भीतर से सफेद तथा स्वाद में अत्यन्त तिक्त होती है।
आयुर्वेदानुसार अतीस गर्म, चरपरी, कड़वी, पाचन तथा उदर की अग्नि को तीव्र करने वाली, कफ, पित्त, अतिसार तथा कृमि रोग नाशक है। खाँसी तथा वमन पर भी यह उपकार करने वाली होती है।
अतीस का वास्तु में महत्व:
अतीस के पौधे का घर की सीमा में होना अशुभकारी नहीं है। इस पौधे का ज्योतिष एवं तंत्र में कोई उपयोग नहीं होता है।
अतीस का औषधीय महत्त्व :
आयुर्वेद की औषधियों में अतीस एक प्रमुख घटक द्रव्य के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस दृष्टि से इसका औषधीय महत्व स्वत: स्पष्ट हो जाता है। इसे विष वर्ग का पौधा माना जाता है किन्तु यह आश्चर्य की बात है कि यह विषैला नहीं है। इसके ताजे पौधे में अवश्य कुछ विषैला अंश विद्यमान रहता है किन्तु इसके सूखने पर इसका विष प्रभाव समाप्त हो जाता है। इसलिये इसका प्रयोग पूर्णत: निरापद समझा जाता है। अतीस के औषधीय महत्व को संक्षित रूप में इस प्रकार से देखा जा सकता है:-
> पाचनशक्ति को सुधारने में अतीस का प्रयोग अत्यन्त लाभ करता है। अतीस के दो ग्राम चूर्ण के साथ एक ग्राम सौंठ अथवा पीपल का चूर्ण मिलायें। इसे दो-तीन चम्मच शहद में मिलाकर चाटें। ऐसा सुबह-शाम भोजन करने से पूर्व करें। इससे पाचनशक्ति ठीक होकर भूख बढ़ती है।
> अतीस के कंद का चूर्ण बच्चों के समस्त रोगों में लाभदायक है। इसका चूर्ण प्राप्त कर शीशी में भरकर रख लें। बच्चों की अवस्था के अनुसार 250 से 500 मि.ग्रा. तक शहद के साथ चटायें। ऐसा दिन में 2-3 बार दें। बच्चों के समस्त रोगों में यह लाभप्रद है।
> शारीरिक सौष्ठवता बढ़ाने तथा कमजोरी दूर करने में भी अतीस का प्रयोग लाभ करता है। डेढ़ से ढाई ग्राम अतीस का चूर्ण, 3 हरी इलायची और थोड़ा वंशलोचन लेकर इनका भली प्रकार से चूर्ण कर लें।यह एक मात्रा है। इसका सेवन 200 मि.ली. हल्के गर्म दूध के साथ करें। दूध में स्वाद के अनुसार मिश्री मिला लें। ऐसा रात्रि में सोने से पूर्व करें। कुछ समय बाद निर्बलता दूर होकर बल में वृद्धि होगी।
> आमातिसार की स्थिति में यह प्रयोग किया जा सकता है- हरड़ के मुरब्बे के साथ दो ग्राम अतीस चूर्ण सेवन करें। इससे आमातिसार में लाभ मिलता है।
> चर्म रोगों में अतीस का चूर्ण अत्यन्त लाभ देता है। पांच ग्राम चूर्ण की फांकी लेकर ऊपर से चिरायते का अर्क पीने से फोड़े-फुसी आदि मिटते हैं।
> सामान्य ज्वर में अतीस का प्रयोग इस प्रकार किया जा सकता है- 50 ग्राम अतीस का चूर्ण लेकर 100 ग्राम मिश्री के साथ अच्छी प्रकार से पीस कर स्वच्छ शीशी में भर लें। बड़ों को इसकी एक ग्राम की मात्रा तथा बच्चों को 500 मि.ग्रा. की मात्रा में सेवन कराया जाना चाहिये। इसका सेवन शहद के साथ सुबह-शाम करें। लाभ प्राप्त होगा।
> छोटे बच्चों की खाँसी एवं श्वास रोगों में अतीस के कंद के चूर्ण की अति अल्प मात्रा शहद में मिलाकर देने से लाभ होता है। अति अल्प से तात्पर्य एक ग्राम चूर्ण के बारहवें भाग से है। यह उपचार बच्चे का बलाबल देखकर ही करना चाहिये। बहुत छोटे बच्चे को कुशल वैद्य के निर्देशन के बिना इसे नहीं देना चाहिये।
> छोटे बच्चों को उल्टी की शिकायत हो जाने पर अतीस के चूर्ण की एक ग्राम के बारहवें भाग बराबर मात्रा तथा उससे दुगनी मात्रा नागरमोथा के चूर्ण की लेकर शहद में मिलाकर देनी चाहिये। इस प्रयोग से एक बार में ही उल्टी बंद हो जाती है।
> बड़ों के श्वास रोग अथवा खाँसी की स्थिति में रात्रि के समय 3-3 घंटे के अन्तराल से अतीस कन्द के चूर्ण की एक-एक ग्राम मात्रा को 2-2 चम्मच शुद्ध शहद में मिलाकर 3-4 बार चाटने से बड़ों के श्वास रोग अथवा खाँसी में पूर्ण आराम होता है। इस प्रयोग को एक-दो दिन करने से ही पूर्ण रूप से रोग जाता रहता है।
> संग्रहणी रोग में अतीस, सौंठ एवं गिलोय का क्वाथ बनाकर देने से उपकार होता है। इसके लिये इन तीनों ही पदार्थों की एक-एक चम्मच मात्रा लेकर जल में उबाल लें। जल दो गिलास भर कर लिया जाये। पर्यात उबाले के पश्चात् इसे छान लें। इसी काढ़े को 5 भाग में बांट लें। इसका एक-एक भाग 3-3 घंटों के अन्तराल से लेने पर संग्रहणी रोग का निदान होता है।
> पेट में कीड़े पैदा हो जाने पर अतीस तथा बिडंग का काढ़ा बना लें। इस हेतु लगभग 500 मिली. पानी में अतीस तथा बिडंग की दो-दो चम्मच मात्रा डालकर उसे इतना उबालें कि 300 मि.ली. पानी शेष रह जाये। इस काढ़े को दिन में 3-3 घंटे के अंतराल से थोड़ा-थोड़ा लें। इस प्रयोग से 1-2 दिन में ही पेट के सारे कीड़े मल के साथ बाहर निकल आते हैं।
> अतीस के चूर्ण की आधा ग्राम मात्रा का नित्य सेवन कर ऊपर से दूध पीने वाले के बल में वृद्धि होती है। शरीर पुष्ट एवं फुर्तीला होता है। अतीस का नित्य सेवन करने से बुखार की समस्या का सामना कम ही करना पड़ता है।
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- उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
- जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
- जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
- तुलसी
- गुलाब
- काली मिर्च
- आंवला
- ब्राह्मी
- जामुन
- सूरजमुखी
- अतीस
- अशोक
- क्रौंच
- अपराजिता
- कचनार
- गेंदा
- निर्मली
- गोरख मुण्डी
- कर्ण फूल
- अनार
- अपामार्ग
- गुंजा
- पलास
- निर्गुण्डी
- चमेली
- नींबू
- लाजवंती
- रुद्राक्ष
- कमल
- हरश्रृंगार
- देवदारु
- अरणी
- पायनस
- गोखरू
- नकछिकनी
- श्वेतार्क
- अमलतास
- काला धतूरा
- गूगल (गुग्गलु)
- कदम्ब
- ईश्वरमूल
- कनक चम्पा
- भोजपत्र
- सफेद कटेली
- सेमल
- केतक (केवड़ा)
- गरुड़ वृक्ष
- मदन मस्त
- बिछु्आ
- रसौंत अथवा दारु हल्दी
- जंगली झाऊ